News & Circulars
Two Days Online Refresher Programme on Research Methods, Approaches, and Practices by MMTTC, NIEPA & MLSU
Uploaded On : 29 February, 2024
सुविवि- छात्र संवाद कार्यक्रम में छात्र नेताओं से मुखातिब हुए कुलपति व रजिस्ट्रार
Uploaded On : 10 September, 2022
उदय प्रभा त्रैमासिक वार्तापत्र, हिंदी विभाग
Uploaded On : 12 August, 2022
प्राकृत भाषा का विकास निरन्तर गतिशील रहेगा - प्रो. आई. वी. त्रिवेदी
Uploaded On : 03 August, 2022
पर्यटन एवं होटल प्रबंधन प्रोग्राम , मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के द्वारा अंतरराष्ट्रीय पर्यटन दिवस , 2021 का भव्य आयोजन
Uploaded On : 24 September, 2021
सुविवि- पीएचडी प्रवेश परीक्षा (रीट) 21 नवंबर को, 30 सितंबर तक भरे जा सकेंगे फॉर्म
Uploaded On : 19 September, 2021
कुलपति ने किया टीकाकरण शिविर का निरीक्षण
Uploaded On : 17 September, 2021
कुलपति ने किया सभी विभागाध्यक्षों को संबोधित
Uploaded On : 17 September, 2021
सुविवि- इंस्टिट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी में इसी सत्र से होंगे प्रवेश
Uploaded On : 17 September, 2021
MLSU: Vice-Chancellor suddenly arrived Cafeteria for inspection
Uploaded On : 15 September, 2021

प्राकृत भाषा का विकास निरन्तर गतिशील रहेगा - प्रो. आई. वी. त्रिवेदी

Uploaded On : 03 August, 2022

जैनविद्या एवं प्राकृत विभाग, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर द्वारा जैनविद्या एवं प्राकृत की समसामयिकता विषयक राष्ट्रीय व्याख्यान माला का आयोजन किया गया। व्याख्यानमाला की अध्यक्षता - प्रो. आई. वी. त्रिवेदी कुलपति- मोहनलाल  à¤¸à¥à¤–ाड़िया वि. वि. उदयपुर ने की। आपने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि प्राकृत भाषा की समसामयिकता निसंदेह वर्तमान में कार्यकारी है और प्राकृत भाषा का विकास निरन्तर गतिशील रहेगा। परमपूज्य मुनिश्री अमितसागरजी महाराज ने अपने वक्तव्य में कहा कि प्राकृत भाषा और साहित्य की समसामयिकता यही है कि उसे हम अपने जीवन में अंगीकार करें।

मुख्य वक्ता के रूप में प्रो. अनेकान्त कुमार जैन, नई दिल्ली ने कहा कि प्राकृत भाषा सादगी और अहिंसा की ओर संकेत देती है। इस भाषा का प्रयोग हमारे जीवन में स‌द्विचारों को विकसित करता है। मुख्य अतिथि प्रो. सी. आर. सुथार, अधिष्ठाता, सामाजिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय, मो. सु.वि.वि. उदयपुर रहे, आपने प्राकृत भाषा और साहित्य के विकसित स्वरूप का प्रतिपादन किया। सारस्वत अतिथि
डॉ. नीरज शर्मा ने कहा कि 'णाणस्स सारमायारो अर्थात् ज्ञान का सार आचार है, प्राकृत का अध्ययन
नैतिकता का आधार है। व्याख्यानमाला के समन्वयक डॉ. ज्योति बाबू  à¤œà¥ˆà¤¨ द्वारा सम्पादित प्राकृत भाषा से अनुप्राणित भारतीय भाषाएँ नामक पुस्तक का लोकार्पण  à¤•à¥à¤²à¤ªà¤¤à¤¿à¤œà¥€ एवं अतिथियों द्वारा किया गया। जो की प्राकृत और भारतीय भाषाओं के अंतः संबंध को प्रस्तुत करने वाली महत्वपूर्ण कृति है साथ ही प्रो. प्रेम सुमन जैन के 81वें जन्मदिन पर अतिथियों द्वारा बधाई दी गयी। कुलपति जी जैन विद्या एवं प्राकृत विभाग एवं सोसाइटी द्वारा प्रोफ़ेसर  à¤œà¥ˆà¤¨ का अभिनंदन किया गया 
  कार्यक्रम का संयोजन गाथा प्रसंगों के माध्यम से डॉ. सुमत कुमार जैन, सहायक आचार्य द्वारा किया गया।
 à¤¸à¤®à¤¾à¤—त अतिथितियों के स्वागत वक्तव्य विषय प्रवेश में व्याख्यानमाला के समन्वयक डॉ ज्योति बाबू जी ने अपने विचार व्यक्त किए उन्होंने कहां प्राकृत साहित्य समाज के लिए अत्यंत उपयोगी है वर्तमान परिपेक्ष में शांति और समृद्धि की स्थापना एवं समाज में सह अस्तित्व की भावना जागृत करने के लिए प्राकृत विद्या का प्रसार आवश्यक है ।भाषा वही है जिसमें  à¤¸à¤‚वेदना हो साथ ही अपनी दूरगामी सोच के साथ विभाग के विस्तार की बात रखी जिसे कुलपति जी ने  à¤…पने उद्बोधन में रेखा अंकित कर विभाग  à¤•à¥‡ विस्तार की बात कही। अंत में सभी का धन्यवाद एवं आभार  à¤¡à¥‰. ज्योति बाबू जैन, प्रभारी अध्यक्ष-जैनविद्या एवं प्राकृत विभाग ने किया।
व्याख्यानमाला में प्रोफेसर सीआर सुथार प्रोफेसर नीरज शर्मा प्रो. हदीस अंसारी, प्रो. एच.सी. जैन, प्रो. जिनेन्द्र कुमार जैन, डॉ आशीष सिसोदिया डॉ. सुरेश सालवी डॉ राजकुमार व्यास डॉ गिरिराज शर्मा डॉ जी एल पाटीदार डॉ तरुण शर्मा डॉ नेहा जी डॉ नीता जी सुमित्रा जी आदि संकाय सदस्यों ,शोधार्थी . विद्यार्थियों के साथ  à¤‰à¤¦à¤¯à¤ªà¥à¤° से समागत गणमान्य नागरिकों ने अपनी सहभागिता की
   à¤¸à¤¾à¤¥ ही परोक्ष रूप से ऑनलाइन माध्यम से इंग्लैंड प्रवास पर चल रहे आरसीए के पूर्व डीन प्रोफेसर एस एल  à¤—ोदावत जी ने  à¤µà¥à¤¯à¤¾à¤–्यानमाला में अपनी सहभागिता दी और जैन विद्या की व्यापकता एवं वर्तमान परिपेक्ष में उसकी प्रासंगिकता पर अपना वक्तव्य प्रदान किया व्याख्यानमाला में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से  à¤²à¤—भग 170 सहभागी प्रतिभागियों ने भाग लेकर जैन विद्या की व्यापकता को समझ  à¤•à¤¾à¤°à¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® को सफल बनाया।

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Last Updated on : 21/12/24